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5 साल से असली सैलरी ही नहीं मिली: अनुदेशकों की सैलरी 17 हजार, लेकिन मिल रहा सिर्फ 7000, कोर्ट में जीते; अब सरकार से लगा रहे गुहार

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लखनऊ16 मिनट पहले

21 अप्रैल 2022 को योगी आदित्यनाथ ऑफिस के ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट हुआ। उसमें लिखा था, ‘कोई भी फाइल किसी पटल पर तीन दिन से अधिक लंबित न रखी जाए।’ इस ट्वीट के कमेंट बॉक्स में अनुदेशक ने लिखा, महाराज जी, 3 दिन छोड़िए अधिकारीगण 2017 से अनुदेशकों की फाइल दबाकर रखे हैं। आप चाहेंगे तो हम लोगों को न्याय निश्चित रूप से मिलेगा।

यह एकमात्र कमेंट नहीं है। ऐसे ही कमेंट सीएम योगी, बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के ट्वीट के कमेंट बॉक्स में नजर आ रहे हैं। अनुदेशक शिक्षक अपनी तय सैलरी 17 हजार की मांग कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें 4 साल से 7 हजार रुपए ही मिल रहे हैं। 2 हजार बढ़ाने का जो वादा हुआ था, वह भी अभी पूरा नहीं हुआ। ऐसे में वह हर दिन मंत्रियों को याद दिलाते रहते हैं। आगे क्या होगा? 17 हजार कब से मिलेंगे? आखिर रुके कहां हैं? आइए बारी-बारी से सब समझने की कोशिश करते हैं।

महीने की 17 हजार सैलरी को लेकर अनुदेशक शिक्षक 2017 से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। ये फोटो लखनऊ प्रदर्शन के दौरान की है।

महीने की 17 हजार सैलरी को लेकर अनुदेशक शिक्षक 2017 से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। ये फोटो लखनऊ प्रदर्शन के दौरान की है।

अपर प्राइमरी स्कूलों की शिक्षा को सुधारने के लिए रखे गए अनुदेशक शिक्षक
यूपी की प्राइमरी स्कूलों में जैसे शिक्षा मित्र बच्चों को पढ़ाते हैं, ठीक उसी तर्ज पर 2013-14 में प्रदेश के 13,769 अपर प्राइमरी यानी क्लास 6 से 8वीं तक के स्कूल में 41,307 अनुदेशकों की नियुक्ति की गई। हर स्कूल में तीन का औसत रखा गया। अनुदेशक स्कूलों में कृषि विज्ञान, शारीरिक शिक्षा, कला और कम्प्यूटर जैसे विषयों को पढ़ाते थे। इसके एवज में उन्हें 7 हजार रुपए महीने की सैलरी मिलती थी। इसके लिए फंड 60:40 का था। मतलब 60% केंद्र सरकार और 40% राज्य सरकार देती थी।

शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बनाया गया तो अनुदेशकों की उम्मीद बढ़ गई
19 जून 2014 को 58,826 और 8 अप्रैल 2015 को 91,104 शिक्षा मित्रों को उस वक्त की अखिलेश सरकार ने सहायक अध्यापक बनाया तो अनुदेशक शिक्षकों की उम्मीद बढ़ गई। संविदा से स्थायी किए जाने को लेकर उन्होंने मांग की। लेकिन स्थायी नहीं किया गया। मार्च 2016 में अखिलेश सरकार ने अनुदेशकों के हित में फैसला लेते हुए 1470 रुपए बढ़ा दिए। अब उन्हें 8,470 रुपए सैलरी मिलने लगी।

बीजेपी ने वादा किया कि सरकार बनी तो 17000 देंगे पर पहले से भी कम कर दिया
9 मार्च 2017 को उस वक्त की सपा सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पीएबी यानी प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड में अनुदेशकों की सैलरी 17 हजार महीने किए जाने को लेकर प्रस्ताव भेजा। 27 मार्च को इसे पीएबी ने रद्द कर दिया। 6 अप्रैल को करीब 2 हजार शिक्षक नए सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलने पहुंच गए। सीएम योगी ने उसी प्रस्ताव को 14 अप्रैल 2017 को दोबारा से भेजवाया। इस बार प्रपोजल को स्वीकार कर लिया गया। बीजेपी यूपी के ट्वीटर हैंडल पर भी पोस्ट किया गया।

आदेश के बाद बीजेपी यूपी के ऑफिशियल हैंडल पर सीएम योगी की फोटो के साथ ट्वीट किया गया था।

आदेश के बाद बीजेपी यूपी के ऑफिशियल हैंडल पर सीएम योगी की फोटो के साथ ट्वीट किया गया था।

15 मई को पीएबी ने आदेश जारी कर दिया। आदेश में तीन चीजें थी। पहली अनुदेशकों की सैलरी 17 हजार रुपए। दूसरी शिक्षा मित्रों को 10 हजार और रिसर्च शिक्षकों को 14,500 रुपए। अनुदेशकों को छोड़कर दोनों को ही अगले महीने से तय सैलरी मिलने लगी। लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद भी अनुदेशकों को बढ़ी हुई सैलरी नहीं मिल सकी।

वादा था 17 हजार का, लेकिन 8470 में 1470 रुपए काट लिए गए
केंद्र सरकार ने 17 हजार रुपए सैलरी के लिए बजट भी जारी कर दिया। लेकिन राज्य सरकार ने उसे अप्लाई नहीं किया। अखिलेश सरकार ने अनुदेशकों का जो 1470 रुपए बढ़ाया था उसे प्रदेश सरकार ने गलत बताते हुए खत्म कर दिया। साथ ही एक साल में उन्हें मिले करीब 13 हजार रुपए की रिकबरी उनकी सैलरी से कर ली गई। प्रदेश की कार्यकारी समिति ने 2 जनवरी 2018 को अनुदेशकों की सैलरी 9800 करने का फैसला किया। अनुदेशकों ने हंगामा किया और कोर्ट चले गए।

कोर्ट ने कहा- अनुदेशकों की सैलरी 17 हजार ही देनी पड़ेगी
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 4 जुलाई 2018 को इस मामले में फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार के सैलरी घटाने के फैसले को रद्द कर दिया। अनुराग और अमित वर्मा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जज राजेश सिंह चौहान ने कहा, सैलरी 17 हजार ही रहेगी। प्रदेश सरकार का फैसला प्रताड़ित करने वाला था इसलिए वह नौ फीसदी ब्याज के साथ जल्द से जल्द भुगतान करे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 7 हजार सैलरी को शिक्षकों का शोषण माना। फैसला अनुदेशकों के हित में सुनाया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 7 हजार सैलरी को शिक्षकों का शोषण माना। फैसला अनुदेशकों के हित में सुनाया।

लखनऊ खंडपीठ के फैसले के बाद भी राज्य सरकार ने सैलरी नहीं बढ़ाई। अनुदेशक इस बार इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए। 11 सितंबर 2020 को कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए अनुदेशकों को मिल रही 7 हजार सैलरी को शिक्षकों का शोषण माना। राज्य सरकार से 3 हफ्ते में जवाब मांग लिए। लेकिन राज्य सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।

काम सभी करवाते हैं पर 11 महीने की ही सैलरी देते हैं
अनुदेशक संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह ने कहा, ‘अनुदेशकों की सैलरी कम देने के मामले में राज्य सरकार ही जिम्मेदार है। वह अनुदेशकों से सभी काम करवाते हैं। चुनाव में बीएलओ बना देते हैं। उसका भी भुगतान सही समय पर नहीं करते। 11 महीने की ही सैलरी देते हैं। लेकिन जब सैलरी की बात आती है तो सिर्फ 7 हजार रुपए ही देते हैं। इतने पैसे में आजकल कैसे परिवार चल पाएगा?’

आगे की तैयारियों को लेकर पूछने पर विक्रम सिंह ने बताया कि 12 मई को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा। उम्मीद है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरह सुप्रीम कोर्ट भी हमारे हक में फैसला सुनाएगा। विरोध प्रदर्शन को लेकर उन्होंने कहा, अभी इसकी तैयारी नहीं है। सोशल मीडिया पर अनुदेशक लगातार मांग कर रहे हैं। अगर बात नहीं बनती तो अनुदेशक संघ पहले की तरह प्रदर्शन करने को मजबूर होगा।

अनुदेशक संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह अपनी मांगों को लेकर मंत्रियों के अलावा राज्यपाल से भी मिलने पहुंचते थे।

अनुदेशक संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह अपनी मांगों को लेकर मंत्रियों के अलावा राज्यपाल से भी मिलने पहुंचते थे।

9 साल में दोबारा भर्ती नहीं हुई अब तक 13 हजार कम हो गए
2013 में पहली भर्ती के बाद अब तक एक बार भी नए पदों पर भर्ती नहीं हुई है। अनुदेशकों की इस वक्त संख्या 27,546 हो गई है। 13,761 अनुदेशक इस वक्त नौकरी में नहीं हैं। इसमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो सरकार के मानक पर खरे नहीं उतरे। मानक की मुख्य बात 100 बच्चों का स्कूल था। जिन स्कूलों में 100 से कम बच्चे हुए वहां के अनुदेशक की छुट्टी कर दी गई।

विक्रम ने बताया कि जिन्हें बाहर निकाल दिया जाता था वह हाईकोर्ट जाते और वहां से फैसला लेकर आते तो जिले के बीएसए उन्हें दोबारा नौकरी पर रख लेते थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से ऐसा नहीं है। कोर्ट के फैसले के बाद भी ड्यूटी नहीं दी गई।” उन्होंने गोरखपुर के तीन लोगों का उदाहरण दिया।

आगे क्या उम्मीद है
अनुदेशक शिक्षकों की कुल पांच मांग है। इसी मांग को लेकर वह लखनऊ में कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। पहले ये पांच मांग देखिए।

  • अनुदेशक शिक्षकों को उनके पद पर रेगुलर किया जाए।
  • उन्हें 11 महीने के बजाय 12 महीने की सैलरी दी जाए।
  • महिला अनुदेशकों को मातृत्व अवकाश की सुविधा दी जाए।
  • उन्हें उनके ब्लॉक में खाली पड़े पदों पर ट्रांसफर किया जाए।
  • नियमित होने तक किसी भी अनुदेशक को कक्षा में छात्रों की संख्या 100 से कम होने पर हटाया नहीं जाए।

अनुदेशक शिक्षकों को उम्मीद है कि सरकार उनके हित के लिए फैसला लेगी। लेकिन ऐसा कब होगा इसके बारे में पूछने पर वह कुछ नहीं बोलते।

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