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ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में रिसर्च: कपड़ों को जमीन में गाड़कर जांच रहे मिट्‌टी की गुणवत्ता; कपड़ा जितना नष्ट होगा, जमीन उतनी ही उपजाऊ होगी

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सिडनी6 घंटे पहले

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इस प्रयोग के जरिए पता चलता है कि जमीन के अंदर पड़े रहने के बाद कपड़े पर कितना असर पड़ा है। - Dainik Bhaskar

इस प्रयोग के जरिए पता चलता है कि जमीन के अंदर पड़े रहने के बाद कपड़े पर कितना असर पड़ा है।

दुनिया भर में वैज्ञानिक या किसान मिट्‌टी की गुणवत्ता जांचने के लिए अलग-अलग प्रयोग करते हैं। आम तौर पर विशेषज्ञ कभी लैब में या फिर कभी खेत में ही मिट्टी की जांच करते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में उन्होंने इसके लिए अनूठा तरीका अपनाया है। इसमें वे मिट्‌टी में सूती कपड़ों को दबाकर मिट्‌टी की गुणवत्ता जांच रहे हैं, जो काफी हद तक सटीक भी पाई जा रही है। राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे इस प्रयोग में किसानों के साथ स्कूली छात्रों को भी शामिल किया गया है।

सिटीजन साइंस प्रोजेक्ट के तहत किसानों को इस तरह के सूती कपड़े खेतों में गाड़ने के लिए दिए जा रहे हैं। इसके साथ टी-बैग भी दिए जा रहे हैं ताकि तुलना की जा सके कि दोनों में किसे कितना नुकसान हुआ है। उन्हें एक हफ्ते या महीने बाद निकालकर देखा जाता है कि कपड़ा कितना नष्ट हुआ है। इसके डिजिटल विश्लेषण से पता चलता है कि मिट्‌टी की गुणवत्ता कैसी है और वह कितनी उपजाऊ है।

रिसर्च में 50 किसान शामिल
दरअसल, सूत या कपास एक तरह की चीनी से बना होता है जिसे सेल्यूलोज कहा जाता है। ऐसे में यह जमीन के अंदर रहने वाले बैक्टीरिया या रोगाणुओं के लिए एक स्वादिष्ट स्नैक का काम करता है। इस प्रयोग में शामिल स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट साइंस के प्रो. ओलिवर नॉक्स कहते हैं, हमने शुरू में 50 किसानों को शामिल किया था। अब न केवल दूसरे किसान भी ऐसा कर रहे हैं, बल्कि वे प्रतिस्पर्धा भी कर रहे हैं। वे दूसरे किसान से कहते हैं- देखो, मेरी मिट्‌टी तुम्हारी मिट्‌टी से बेहतर है।

कपड़े पर बैक्टीरिया के हमले से पता चलेगी गुणवत्ता

इस प्रयोग के जरिए पता चलता है कि जमीन के अंदर पड़े रहने के बाद कपड़े पर कितना असर पड़ा है। उस पर बैक्टीरिया या अन्य जीवाणुओं का हमला कितना हुआ है। अगर कहीं कपड़ा ज्यादा नष्ट हुआ होगा, तो वहां की जमीन अच्छी उपज लायक है और मिट्टी में पर्याप्त तत्व मौजूद हैं।

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