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मुंबईएक घंटा पहलेलेखक: किरण जैन
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सिनेमाजगत में अपनी खास जगह बनाने वाले दिग्गज एक्टर ऋषि कपूर की आज (30 अप्रैल) पहली डेथ एनिवर्सरी है। पिछले साल उनकी तबियत बिगड़ने के बाद उन्हें मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद उनका निधन हो गया था। ऋषि कपूर के साथ ‘प्रेम रोग’, ‘जमाने को दिखाना है’, ‘प्यार में काबिल’ जैसे कई फिल्मों में काम कर चुकीं एक्ट्रेस पद्मिनी कोल्हापुरे ने उनकी पहली बरसी पर उन्हें याद किया है। दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान पद्मिनी ने ऋषि से जुड़ी कुछ पुरानी यादों को शेयर भी किया है।
अच्छे एक्टर ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छे इंसान भी थे
पद्मिनी कोल्हापुरे ने कहा, “ऋषि जी के साथ काम करने से पहले मैं उनकी बहुत बड़ी फेन थी। मैं अपना स्कूल बंक करके उनकी फिल्में देखने जाती थी। जाहिर है उस वक्त उनके साथ काम करना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था। मैं बहुत छोटी उम्र से काम करती आ रही हूं और मेरी सिफारिश ऋषि जी ने नासीर हुसैन से की थी। इस बात के लिए मैं आज भी ऋषि जी का आभार मानती हूं। उन्होंने मुझे ‘इंसाफ का तराजू’ के सेट पर देखा था। जिसके बाद उन्होंने नासिर जी से मुझे कास्ट करने की सिफारिश की थी। मैं उनकी फेन तो पहले से ही थी, लेकिन इस इंसिडेंट के बाद उनके प्रति रिस्पेक्ट और भी बढ़ गई। वे सिर्फ एक अच्छे एक्टर ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छे इंसान भी थे। इंडस्ट्री ने एक बहुत अच्छे व्यक्ति को खोया है।”
अपने दौर के सुपरस्टार थे ऋषि कपूर
ऋषि कपूर के साथ काम करने के अपने अनुभव के बारे में बताते हुए पद्मिनी ने कहा, “वे अपने दौर के सुपरस्टार थे। जब पहली बार उनके साथ स्क्रीन स्पेस शेयर किया था, तो मैं बहुत घबराई हुई थी। मेरा पहला शॉट उनके साथ एक गाने का था, नर्वस थी लेकिन जिस तरह से उन्होंने मुझे कम्फर्ट फील करवाया वो कमाल का था। इस तरह हमारी फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ। ‘प्रेम रोग’ के सीन में मुझे ऋषि जी को थप्पड़ मारना था। यकीन मानिए, वो सीन मेरे लिए बहुत मुश्किल था। क्योंकि ऋषि कपूर जैसे सुपरस्टार को मैं थप्पड़ कैसे मार सकती हूं, यह सोच कर बहुत ही ज्यादा नर्वस थी। तकरीबन 8 री-टेक देने के बाद, वो सीन ओके हुआ था। लेकिन तब तक ऋषि जी का चेहरा लाल हो चूका था। मेरे लिए आज भी वो दिन यादगार रहेगा।”
ऋषि को डिप्लोमेटिक बनना बिलकुल पसंद नहीं था
ऋषि कपूर की पर्सनालिटी के बारे में पद्मिनी ने कहा, “वे पहले से ही बहुत ओपन रहे हैं, उन्हें डिप्लोमेटिक बनना बिलकुल पसंद नहीं था। जो बात उनके दिल और मन में होती थी, वही उनकी जुबान पर होती थी। कब कहां क्या बोलना है, उन्हें इसकी बहुत अच्छी समझ थी। मुझे भी कभी कुछ बोल देते थे, तो कभी घबराती नहीं थी। वो मुझसे बड़े थे, उनके लिए एक लिहाज था। अगर वो कुछ बोल भी देते थे, तो उसे सीरियस नहीं लेती थी।”
हमारी आखिरी मुलाकात दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी
ऋषि से अपनी आखिरी मुलाकात के बारे में पद्मिनी ने कहा, “हमारी आखिरी मुलाकात दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी। जब उन्होंने हमारी एक फोटो भी खींची और सोशल मीडिया पर पोस्ट भी की थी। उस वक्त भी वे काफी मिलनसार थे, कभी एहसास ही नहीं हुआ की वे किसी बीमारी से गुजर रहे हैं। इतना ही नहीं, हम एक फिल्म भी साथ करने का प्लान कर रहे थे। लेकिन वो हो ही नहीं पाया। हमारी ये ख्वाहिश अधूरी ही रह गई। उनका इस तरह जाना हम सभी के लिए बहुत शॉकिंग था।”