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फिल्‍म रिव्यू- हम दो हमारे दो: बिना फैमिली इंसान अधूरा है, इसी मैसेज में पिरोई गई है राजकुमार-कृति की कॉमेडी फिल्‍म

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7 घंटे पहलेलेखक: अमित कर्ण

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  • स्टार कास्ट- राजकुमार राव, कृति सैनन, परेश रावल, रत्ना पाठक शाह, अपारशक्ति खुराना
  • डायरेक्टर- अभिषेक जैन
  • अवधि- दो घंटे नौ मिनट
  • रेटिंग्स- 3.5/5 स्टार

राजकुमार राव और कृति सैनन की ‘हम दो हमारे दो’ एक बड़े मैसेज में पिरोई गई कॉमेडी फिल्‍म है। मैसेज यह कि बिना फैमिली के इंसान अधूरा है। उसकी सफलताएं बेमानी हैं। असली मजा तो अपनों के साथ ही आता है। फैमिली सिर्फ खून के रिश्‍तों से तय नहीं होती। अनजान के हाथ और साथ भी मुकम्‍मल परिवार का निर्माण करते हैं। यह सब सच भी है। फिल्‍म उस इमोशन को महसूस करा पाने में बहुत हद तक सफल भी होती है।

आज के युवक-युवतियों की महत्‍वाकांक्षाओं और जीवनसाथी के चयन के आधार को भी कन्‍वि‍नसिंग तरीके से पेश करती है। फिल्‍म जिस नोट पर शुरू होती है, उसे अंत तक अनुशासित भाव से फॉलो करती है। इसके स्‍क्रीनप्‍ले में कुछेक जगहों पर खामियां जरूर हैं, मगर यह बिना लाउड हुए एक फील गुड फैमिली फिल्‍म दर्शकों को देती है। कहीं-कहीं थोड़ी सुस्‍त रफ्तार और दोहराव का शिकार भी हुई है।

ऐसी है फिल्म की कहानी
नायक ध्रुव शिखर (राजकुमार राव) अनाथ है। सर्वाइवल के लिए ढाबे पर उसका बचपन गुजरा है। परिवार को तरसता रहा। बहरहाल अपने दम पर वह नामी गिरामी उद्यमी बन जाता है। ब्‍लॉगर अन्‍या मेहरा (कृति सैनन) से शादी करना चाहता है, जिसे फैमिली का फैशिनेशन ही नहीं ऑब्‍शेसन है। ऐसे में नायक अपने दोस्‍त शंटी (अपारशक्ति खुराना) और शादीराम (सानंद वर्मा) की मदद से मां-बाप ढूंढने निकलता है पर उसकी खोज पुरुषोत्‍तम मिश्रा (परेश रावल) और दीप्ती कश्‍यप (रत्‍ना पाठक शाह) पर पूरी होती है, जिनके खुद ही अतीत के अपने अफसाने हैं।

  • फिर क्‍या कन्‍फ्यूजन और उससे कॉमेडी व इमोशन उपजते हैं, फिल्‍म उस बारे में है। इन चारों के किरदारों में राजकुमार राव, कृति सैनन, परेश रावल, रत्‍ना पाठक शाह ने दमदार परफॉर्मेंस दी है। अपारशक्ति खुराना, सानंद वर्मा अपने किरदारों में बने रहे हैं। अन्‍या के पिता के तौर मनु ऋषि चड्ढा ने अपने विट की छटा बिखेरी है। राजकुमार राव रिपिटिटिव नहीं लगे हैं। कृति अपनी स्‍क्रीन प्रेजेंस और अदायगी से असरदार लगी हैं।
  • फिल्‍म का पहला हाफ सुखद है। प्‍यार के इजहार और अन्‍या मेहरा का अपने परिवार के प्रति जो प्‍यार है, वह रोजी रोटी के चक्‍कर में अपने परिवार से दूर रह रहे लोगों को जज्‍बाती करता है। सफलता की दौड़ और सवाईवल की मजबूरी में फंसे हुए इंसान को जरा दो पल ठहरकर सोचने पर मजबूर करता है कि वो जिस कुचक्र में रात दिन लगा हुआ है, बिना परिवार कितने प्रासंगिक हैं। दिक्‍कत सेकेंड हाफ में हो गई है।
  • इंटरवल से पहले यह बड़े ठहराव के साथ ध्रुव, अन्‍या, पुरूषोत्‍तम और दीप्‍ती के सफर, अतीत और सोच को पेश करती है। किरदारों को अच्‍छे से बिल्‍ट अप किया गया है। नकली मां बाप को कब तक नायिका और उसका परिवार नहीं पकड़ पाएगा, उसका इंतजार दर्शक करते हैं। वह जब होता है तो फिल्‍म को एंडिंग तक लाने में मेकर और रायटर जल्‍दी कर गए हैं।
  • फिर भी फिल्‍म का मैसेज और कॉमेडी के सुर ने इसमें ताजगी दी है। इसका लाउड न होना इसकी ताकत है। मेटाफर में यह काफी कुछ कहती है। कुछ जगहों पर यह ठोस कारण नहीं दे पाई है, वह इसकी कमजोरी रही है। सचिन जिगर का म्‍युजिक कहानी को आगे बढ़ाने में सहायक है। कैमरा, प्रॉडक्‍शन डिजाइन, कॉस्‍टयुम डिजाइन से फिल्‍म की प्रॉडक्‍शन वैल्‍यू उभरी है।

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