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2 घंटे पहले
क्या आपको पता है कि 1993 में अगर आपने इंफोसिस में 10 हजार रुपए लगाए होते, तो आज उसकी कीमत 18 करोड़ रुपए होती।
क्या आप जानते हैं कि इंफोसिस में हर साल 20 लाख से ज्यादा जॉब एप्लीकेशन आती हैं। इतनी तो भारत के 95% शहरों की आबादी भी नहीं है।
इंफोसिस को लेकर ऐसी बहुत सारी रोचक बाते हैं, जो आपको हैरान कर सकती हैं। बुधवार यानी 13 अप्रैल को कंपनी ने जनवरी से मार्च तिमाही की कमाई के आंकड़े जारी किए हैं। आगे बढ़ें उससे पहले आप इंफोसिस के ताजा जारी किए आंकड़े पढ़ सकते हैं…
आइए, अब आपको इंफोसिस से जुड़े 8 रोचक किस्से बताते हैं…
1. एक ही कंपनी में काम करते थे इंफोसिस के सभी फाउंडर्स
इंफोसिस को नारायण मूर्ति और उनके 6 इंजीनियर दोस्तों ने मिलकर शुरू किया था। ये 6 दोस्त हैं- नंदन नीलेकणि, एसडी शिबुलाल, क्रिस गोपालकृष्णन, अशोक अरोड़ा, एनएस राघवन और के दिनेश। कमाल की बात ये है कि ये सभी लोग पाटनी कंप्यूटर सिस्टम्स के कर्मचारी थे। नौकरी से इस्तीफा देकर इन्होंने इंफोसिस शुरू करने का फैसला किया।
एक तस्वीर में इंफोसिस के सभी फाउंडर्स। बाएं से नंदन नीलेकणी, एनएस राघवन, क्रिस गोपालकृष्णन, एनआर नारायण मूर्ति, एसडी शिबुलाल और के दिनेश। कंपनी के एक और फाउंडर अशोक अरोड़ा इस तस्वीर में नहीं हैं। उन्होंने 1989 में कंपनी छोड़ दी थी।
2. पत्नी से 10 हजार रुपए कर्ज लेकर शुरू की कंपनी
1981 में नारायण मूर्ति ने कंपनी शुरू करने का फैसला तो कर लिया, लेकिन पूंजी नहीं थी। ऐसे में उनकी पत्नी ने अपनी सेविंग्स से 10 हजार रुपए मूर्ति को दिए। इस छोटी सी रकम से मूर्ति ने पुणे में कंपनी शुरू की और नाम रखा- इंफोसिस कंसल्टेंट्स। कंपनी का पहला ऑफिस नारायण मूर्ति के घर का एक कमरा था। कंपनी का रजिस्टर्ड ऑफिस राघवन का घर था।
3. इंफोसिस के पहले कर्मचारी नारायण मूर्ति नहीं हैं
आमतौर पर माना जाता है कि जब कंपनी नारायण मूर्ति ने शुरू की, तो वही इसके पहले कर्मचारी भी होंगे। मूर्ति पहले, दूसरे, तीसरे नहीं बल्कि चौथे कर्मचारी हैं। दरअसल, कंपनी शुरू होने के बाद भी मूर्ति करीब एक साल तक पाटनी कंप्यूटर्स सिस्टम्स के साथ ही जुड़े थे। वहां बचा हुआ काम खत्म करने के बाद ही उन्होंने ऑफिशियली इंफोसिस जॉइन किया।
इंफोसिस के कर्मचारियों की एक शुरुआती तस्वीर। इसे इंफोसिस ने अपनी वेबसाइट में डाला हुआ है।
4. एक आईटी कंपनी, जिसके पास 2 साल तक कंप्यूटर ही नहीं था
इंफोसिस एक आईटी कंपनी के बतौर शुरू हुई, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि शुरुआती दो साल तक कंपनी के पास कोई कंप्यूटर ही नहीं था। 1983 में मूर्ति ने पहला कंप्यूटर खरीदा। इसका मॉडल था- डेटा जनरल 32-बिट MV8000.
5. बंद होने की कगार पर थी इंफोसिस
शुरू होने के महज 8 साल बाद 1989 में कंपनी बंद होने की कगार पर आ गई। दरअसल, इंफोसिस का अमेरिकी पार्टनर कर्ट सलमॉन एसोसिएट्स के साथ करार काम नहीं किया। उसी वक्त कंपनी के एक को-फाउंडर अशोक अरोड़ा भी कंपनी छोड़ गए। दूसरे लोगों में भी निराशा थी। यहां नारायण मूर्ति ने कमान संभाली। उन्होंने अन्य लोगों से कहा- अगर आप सभी भी जाना चाहते हैं, तो जाइए। मैं यहां आखिर तक लडू़ंगा। सभी पार्टनर्स ने कंपनी में बने रहने का फैसला किया और फिर कंपनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
6. 10 हजार के IPO की कीमत आज 18 करोड़ रुपए
1993 में इंफोसिस ने शेयर मार्केट में जाने का फैसला किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि आज की आईटी दिग्गज इंफोसिस का IPO 13% कम सब्सक्राइब किया गया था। उस वक्त इंफोसिस के एक शेयर की कीमत 95 रुपए थी। जिसने भी 9,500 रुपए के 100 शेयर खरीदे थे, वो आज करोड़पति हो गए हैं। 100 शेयर आज बोनस और स्प्लिट मिलाकर 1,02,400 शेयर हो चुके हैं। मौजूदा शेयर प्राइस के हिसाब से आज उनकी कीमत करीब 18 करोड़ रुपए है।
7. NASDAQ में लिस्ट होने वाली पहली इंडियन IT कंपनी
1999 तक इंफोसिस का रेवेन्यू 100 मिलियन डॉलर पहुंच चुका था। इसी साल कंपनी NASDAQ में लिस्ट होने वाली भारत की पहली आईटी कंपनी बन गई। NASDAQ एक अमेरिकी स्टॉक मार्केट है। उस वक्त NASDAQ की 20 सबसे ज्यादा मार्केट कैप वाली कंपनियों में इंफोसिस भी शामिल थी।
8. इंफोसिस का साम्राज्य और समाज को रिटर्न
41 साल पहले शुरू हुई इंफोसिस का साम्राज्य बहुत बड़ा हो चुका है। कंपनी के पास 2.92 लाख कर्मचारी हैं। करीब 1 लाख करोड़ रुपए इसका रेवेन्यू है और करीब 8 लाख करोड़ रुपए मार्केट कैप है। इंफोसिस आज भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है।
इंफोसिस ने अपने कर्मचारियों की ट्रेनिंग के लिए मैसूर में 370 एकड़ में फैला एक ट्रेनिंग सेंटर बना रखा है। माना जाता है कि ये दुनिया का सबसे बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है।
कमाई के साथ कंपनी सोशल सर्विस में भी पीछे नहीं है। इंफोसिस फाउंडेशन ने बाढ़ ग्रस्त इलाकों में 2,500 मकान बनवाए हैं। देशभर में 15 हजार से ज्यादा रेस्टरूम, 60 हजार से ज्यादा लाइब्रेरी बनवाई हैं। 14 लाख स्कूली बच्चों को खाना मुहैया कराया है। इसके आलावा फाउंडेशन साइंस और रिसर्च सेक्टर में सालाना 73 लाख रुपए से ज्यादा के अवार्ड और सम्मान देता है।
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