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आर्चर प्रगति ने ब्रेन हेमरेज को हराया: 10 महीने बाद भारतीय टीम में जगह बनाई; पिता बोले- वापसी तो दूर, हम उनके ठीक होने की उम्मीद खो चुके थे

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नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: राजकिशोर

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17 साल की तीरंदाज प्रगति चौधरी ब्रेन हेमरेज को भी मात देकर कंपाउंड राउंड में वर्ल्डकप के लिए भारतीय टीम में जगह बनाई है। प्रगति 10 महीने पहले मई में लॉकडाउन के दौरान घर में ही चक्कर खाकर गिर गई थीं। डॉक्टरों ने ब्रेनहेमरेज बताया। उनके कई ऑपरेशन हुए और वे एक महीने से ज्यादा समय तक अस्पताल में रहीं। अब एक बार फिर से वापसी करते हुए वर्ल्ड कप के लिए हुए ट्रायल में उन्होंने अपने करियर का बेस्ट प्रदर्शन करते हुए भारतीय टीम में जगह बनाई।

प्रगति के पिता अतुल कुमार चौधरी कहते हैं, ‘फिर से देश के लिए मेडल जीतने की तो दूर, हमने उसके ठीक होने की भी उम्मीद छोड़ दी थी। भगवान का शुक्र है कि खेल प्रेमियों की दुआएं काम आईं और वह फिर से देश के लिए मेडल जीतने के लिए तैयारी कर रही है। यह उसका दूसरा जन्म है। हमें उम्मीद है कि एक बार फिर देश का नाम रोशन करेगी।’

इलाज के लिए पिता ने बेची दी दुकान, फेडरेशन ने की मदद
अतुल कुमार बताते हैं कि दस महीने पहले 5 मई की रात को वह शायद ही भूल पाएंगे। सभी लोग पर ही थे। अचानक प्रगति चक्कर खाकर गिर गई। ऊपर बिल्डिंग में ही डॉक्टर रहते थे, उन्हें बुलाया। उन्होंने तत्काल अस्पताल में एडमिट कराने की सलाह दी। डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि ब्रेन हेमरेज हुआ है। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था। एक महीना से ज्यादा समय तक अस्पताल में रही। मेरी एक छोटी सी दुकान थी, उसे तत्काल बेच दिया ताकि बेटी का इलाज करवा सकूं।

मेरी दो बेटियां हैं। प्रगति छोटी है। मैने तो घर भी बेचने के लिए भी बिल्डिर्स से बात कर ली थी, लेकिन प्रगति की बीमार होने की खबर जब आर्चरी फेडरेशन को मिली तो उन्होंने सहयोग किया। खेल मंत्रालय की ओर से भी मदद दिलवाई। मैं आर्चरी फेडरेशन सहित तमाम लोगों का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने आगे आकर मदद की।

प्रगति खुद को ही नहीं पहचान पा रही थी
वह आगे बताते हैं कि एक महीने से ज्यादा समय तक अस्पताल में रहकर जब प्रगति घर आई, तो उसका बायां पैर काम नहीं कर रहा था। हाथ से वजन भी उठा नहीं पा रही थी। उसे कुछ भी याद नहीं था। हालांकि डॉक्टरों ने भरोसा दिया था कि धीरे-धीरे उसे चीजें याद आएंगी। वह तो यह भी भूल गई थी कि वह तीरंदाजी करती थी और देश के लिए मेडल जीत चुकी है। हम तो केवल ईश्वर से यही दुआ करते थे कि वह ठीक हो जाए। उसे चीजें याद आएं।

डॉक्टरों की सलाह पर हम उसे पुरानी बातों की याद दिलवाते थे। उसे उसकी आर्चरी करते हुए फोटो और मेडल जीतने वाली फोटो दिखाते थे तो वह केवल इतना कहती थी कि क्या यह मैं हूं। कोच सुरेंद्र सर और विकास सर ने उसे प्रेरित किया। उसकी फोटो और ट्रेनिंग की वीडियो दिखाकर उसे मोटीवेट करते थे।

फोटो और वीडियो दिखाकर उसे भरोसा दिलाया कि वह ऐसा कर सकती है
कोच विकास ने बताया कि अस्पताल से लौटी तो उसकी हालत खराब थी। अस्पताल से लौटने के कुछ दिन बाद ही उसके पापा उसे ग्रांउड पर लेकर आने लगे। उसका बायां हिस्सा काम नहीं कर रहा था। वह सही से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। सबसे पहले उसे मोटीवेट किया। हमने और सुरेंद्र सर ने फोटो और वीडियो दिखाकर उसके अंदर भरोसा जगाया कि वह फिर से ऐसा कर सकती है, क्योंकि पहले वह ऐसा कर चुकी है।

शुरुआत में मेडिटेशन कराया। उसके फिजियो की सलाह पर हमने शुरुआत में इक्विपमेंट के वजन कम करने के लिए गैर जरूरी चीजों को हटाया। वह एक महीने बाद धनुष पकड़ पाई। फिर एरो को खींचना शुरू किया। अब वह पूरी तरह से फिट है।

वापसी के बाद प्रगति ने करियर का बेस्ट स्कोर किया
प्रगति कहती है,’जब मैं एक महीने बाद अस्पताल से आई थी, तब मैं बैठ भी नहीं पा रही थी। मुझे कुछ भी याद नहीं था, कि मैं इंटरनेशनल स्तर पर मेडल जीत चुकी हूं। ऐसे में वापसी के बारे में सोचना भी मेरे लिए मुश्किल था। लेकिन परिवार, डॉक्टर और कोच सुरेंद्र सर और विकास सर ने मेरी मदद की। उन्होंने प्रेरित किया। सभी दुआओं से न केवल मैं वापसी कर सकी, बल्कि मैने ट्रायल में अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ स्कोर किया। पहले 720 में मेरा बेस्ट 690 तक रहा है। लेकिन वापसी के बाद मैंने 720 में से 695, 699 और 704 का स्कोर किया।’

प्रगति वर्ल्डकप के साथ 12 वीं बोर्ड की कर रही हैं तैयारी
प्रगति ने बताया कि वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं। अब मेडिसिन भी बंद हो चुकी हैं, लेकिन उनकी दिनचर्या में थोड़ी चेंज हो गई है। वह जल्दी सो जाती हैं। साथ ही बाहर की चीजें नहीं खाती हैं। वहीं प्रैक्टिस के दौरान हमेशा टोपी पहनती हैं, ताकि धूप से बच सकें।

वह वर्ल्डकप के साथ ही 12 वीं बोर्ड की भी तैयारी कर रही हैं। उन्होंने बताया कि उनकी बड़ी बहन बोर्ड की तैयारी में मदद कर रही हैं। वह बोर्ड में बेहतर दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज में एडमिशन लेना चाहती हैं। प्रैक्टिस करने के बाद वह जो समय मिलता है, उसमें पढ़ाई करती हैं।

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