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अलर्ट करने वाली रिसर्च: स्मार्टफोन-कम्प्यूटर की स्क्रीन के सामने अधिक समय बिताने वालों में 80% तक दूर की नजर धुंधली होने का खतरा, 2050 तक दुनिया की आधी आबादी इससे जूझ सकती है

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  • Staring At Computer And Phone Screens For Too Long Can Increase The Risk Of Short sightedness In Children By Up To 80%,

7 घंटे पहले

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लम्बे समय लोगों का स्क्रीन के सामने समय बिताना उन्हें वो बीमारी दे सकता है जो आमतौर पर बुजुर्गों में देखी जाती है। इंग्लैंड के शोधकर्ताओं ने अलर्ट किया है। वैज्ञानिकों का कहना है, अगर आपका एक लम्बा समय स्मार्टफोन या कम्प्यूटर की स्क्रीन के सामने बीतता है तो दूर की नजर कमजोर हो सकती है। वैज्ञानिक भाषा में इसे मायोपिया कहते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, 3 महीने से लेकर 33 साल तक के लोगों में मायोपिया होने का खतरा 80 फीसदी तक रहता है। यह दावा इंग्लैंड की एंगलिया रस्किन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में किया है।

सिर्फ स्मार्टफोन ही 30% तक रिस्क बढ़ाता है
शोधकर्ता कहते हैं, सिर्फ स्मार्टफोन ही 30 फीसदी तक मायोपिया का रिस्क बढ़ाता है। अगर जरूरत से ज्यादा कम्प्यूटर का इस्तेमाल करते हैं तो यह खतरा बढ़कर 80 फीसदी तक पहुंच जाता है। 2050 तक लोगों पर इसका बुरा असर हो सकता है। दुनिया की आधी आबादी को दूर की चीजें धुंधली दिखनी शुरू हो सकती हैं या आंखों से जुड़ी ऐसी ही कोई समस्या हो सकती है।

WHO की सलाह के उलट है हाल
2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2 साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन के सामने आने से रोकने की बात कही थी। WHO के मुताबिक, 2 से 5 साल के बच्चों को दिनभर में एक घंटे से अधिक गैजेट्स इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए।

उसी साल ब्रिटेन के 2 हजार परिवारों पर हुए सेंससवाइड सर्वे में सामने आया कि बच्चे औसतन एक हफ्ते में 23 घंटे स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं। कोरोनाकाल के दौरान हुईं स्टडीज बताती हैं, लॉकडाउन के दौरान स्क्रीन टाइम और ज्यादा बढ़ गया। वर्क फ्रॉम होम और होम स्टडी के कारण गैजेट्स का इस्तेमाल पहले से कई गुना अधिक बढ़ गया।

मायोपिया तेजी से बढ़ती समस्या शोधकर्ता रुपेर्ट बॉर्न कहते हैं, मायोपिया तेजी से बढ़ती समस्या है। रिसर्च में सामने आया है कि सिर्फ युवा ही नहीं, बच्चे भी गैजेट्स के साथ जरूरत से ज्यादा समय बिता रहे हैं। स्कूल बंद होने के कारण स्थिति और बिगड़ रही है। गैजेट्स के कारण भविष्य में आंखों और उसकी रोशनी पर किस हद तक बुरा असर पड़ सकता है, इस पर और रिसर्च करने की जरूरत है।

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